कपिल सिब्बल के सोशल नेटवर्किंग साइट पर प्रतिबंध के बयान के बाद से तो पूरे देश के उस वर्ग में भूचाल सा आ गया जो कम्प्यूटर पर बैठकर क्रान्ति करने का दम भरता है। इसके साथ ही उस वर्ग में भी हलचल मच गई जो वर्ग इन साइट के उपयोगकर्ताओं द्वारा निशाना बनाया जा रहा था।
देखा जाये तो आज के समय में विचारों की स्वतन्त्रता सभी को प्राप्त है और ऐसे में विचाराभिव्यक्ति पर प्रतिबन्ध तानाशाही की याद दिलाता है न कि लोकशाही की। इसके बाद भी यह कहने में सोशल नेटवर्किंग साइट का उपयोग करने वाले भी कोई संकोच नहीं करेंगे कि कहीं न कहीं बहुत से उपयोगकर्ताओं की भाषा और विचाराभिव्यक्ति अशालीन, अमर्यादित हो जाती है। वे सरकार की बुराई करने में और आपसी विचार विनिमय में अश्लीलता की हद तक पार कर जाते हैं।
बहरहाल कुछ भी हो सरकार के द्वारा प्रतिबन्ध का इरादा ही तानाशाही प्रक्रिया की याद दिलाता है और इन साइट का उपयोग करने वालों का अशालीन हो जाना हमारे असामाजिक होने को दर्शाता है। इन साइट पर किसी तरह का प्रतिबन्ध न होना, सम्पादन की बाध्यता न होना इसके उपयोगकर्ताओं को उच्छृंखल बनाता है। ऐसे में आपको क्या लगता है कि ‘‘पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त इस तरह के माध्यमों पर क्या आंशिक और पूर्णतः प्रतिबन्ध आवश्यक है?’’
यही इस बार के ई-बरिस्ता का विषय भी है जिसके पक्ष में और विपक्ष में आप सभी लोगों के विचार आमन्त्रित हैं। आपके विचारों को 15 दिसम्बर से 31 दिसम्बर के मध्य ई-बरिस्ता में प्रकाशित किया जायेगा। उक्त विषय पर अपने आलेख कृपया ebaristaa@gmail.com पर मेल करें। धन्यवाद
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