ई-बरिस्ता एक ऐसा मंच है जहाँ हम सब किसी भी विषय पर आपस में चर्चा कर सकते हैं...एक सार्थक चर्चा कर सकते हैं. ई-बरिस्ता में एक माह में हम दो विषयों को अपनी चर्चा का केंद्र-बिन्दु बनायेंगे. पहले विषय पर हमारी चर्चा 1 तारीख से 15 तारीख तक और दूसरे विषय पर चर्चा 16 तारीख से 30/31 तारीख तक चला करेगी.

इन विषयों पर आपसे आलेखों की अपेक्षा रहेगी जो सम्बंधित विषय पर गंभीरता से प्रकाश आरोपित करके विषय पर सही राह सभी को दिखा सकेंगे. आप सभी से ये भी अपेक्षा रहेगी कि अपने आलेख भेजने के साथ-साथ आप अपने मित्रों और सहयोगियों से भी सम्बंधित विषय पर आलेखों को प्रेषित करवाएंगे.

आलेखों का प्रकाशन नित्य किया जायेगा किन्तु निश्चित समयावधि के बाद प्रकाशन संभव नहीं होगा. अतः आप सभी विषय की निर्धारित तिथि तक अवश्य ही आलेख प्रेषित करियेगा...

आपके सुझावों, आलेखों और टिप्पणियों का इंतज़ार रहेगा.

कृपया आप अपने आलेख, सुझाव, टिप्पणी आदि हमें ebaristaa@gmail.com पर मेल करें.

रविवार, 1 जनवरी 2012

नए वर्ष की शुभकामनाओं के साथ आलेख आमंत्रण

नये वर्ष की शुभकामनायें देते हुए आप सभी से 01 जनवरी 2012 से 15 जनवरी 2012 की समयावधि में ई-बरिस्ता के लिए दिये गये विषय पर चर्चा के लिए आलेख भेजने का निवेदन है। आशा है कि आप सहयोग करेंगे।
आभार
इस बार के निर्धारित किये गए विषय के बारे में विस्तार ने निम्नवत है....

ई-बरिस्ता सार्थक चर्चा के लिए बनाया गया आपका ही मंच है. पिछले कुछ माह से देश में लगातार जन लोकपाल बिल को लेकर माहौल बना हुआ है. एक वर्ग ऐसा है जो देश में लोकपाल को लेकर मची हलचल के लिए अन्ना के अनशन को प्रभावी मानता है जबकि एक वर्ग ऐसा भी है जो इसके पीछे मीडिया का हाथ बताता है...इस दूसरे वर्ग का कहना है कि इसी कारण से अन्ना टीम ने अपने लोकपाल बिल में मीडिया को शामिल नहीं किया है.....

देश में पिछले ग्यारह साल से अनशन कर रही इरोम शर्मीला का नाम हो अथवा ६८ दिनों तक अनशन के बाद मौत का शिकार हुए निगमानंद ऐसे नाम हैं जो देश के सामने नहीं आ सके हैं...ऐसे में कहीं न कहीं मीडिया की भूमिका चर्चा में आती ही है...बस इसी कारण ई-बरिस्ता ने भी अपनी चर्चा का विषय मीडिया को बनाया है. इस बार का विषय है "अन्ना आन्दोलन को लोकप्रियता क्या मीडिया के द्वारा मिल रही है?"

इस मुद्दे के पक्ष या विपक्ष में अपने विचार हमें ebaristaa@gmail पर मेल करें...आपके विचारों का प्रकाशन १ जनवरी २०१२ से १५ जनवरी २०१२ तक किया जायेगा.


बुधवार, 28 दिसंबर 2011

अन्ना आन्दोलन को लोकप्रियता क्या मीडिया के द्वारा मिल रही है? -- ई-बरिस्ता पर चर्चा का नया विषय

ई-बरिस्ता सार्थक चर्चा के लिए बनाया गया आपका ही मंच है. पिछले कुछ माह से देश में लगातार जन लोकपाल बिल को लेकर माहौल बना हुआ है. एक वर्ग ऐसा है जो देश में लोकपाल को लेकर मची हलचल के लिए अन्ना के अनशन को प्रभावी मानता है जबकि एक वर्ग ऐसा भी है जो इसके पीछे मीडिया का हाथ बताता है...इस दूसरे वर्ग का कहना है कि इसी कारण से अन्ना टीम ने अपने लोकपाल बिल में मीडिया को शामिल नहीं किया है.....

देश में पिछले ग्यारह साल से अनशन कर रही इरोम शर्मीला का नाम हो अथवा ६८ दिनों तक अनशन के बाद मौत का शिकार हुए निगमानंद ऐसे नाम हैं जो देश के सामने नहीं आ सके हैं...ऐसे में कहीं न कहीं मीडिया की भूमिका चर्चा में आती ही है...बस इसी कारण ई-बरिस्ता ने भी अपनी चर्चा का विषय मीडिया को बनाया है. इस बार का विषय है "अन्ना आन्दोलन को लोकप्रियता क्या मीडिया के द्वारा मिल रही है?"

इस मुद्दे के पक्ष या विपक्ष में अपने विचार हमें ebaristaa@gmail पर मेल करें...आपके विचारों का प्रकाशन १ जनवरी २०१२ से १५ जनवरी २०१२ तक किया जायेगा.

रविवार, 25 दिसंबर 2011

डॉ0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर का ई बरिस्ता पर आलेख -- "प्रतिबन्ध से माहौल सुधरेगा"

सरकार की तरफ से सोशल नेटवर्क साईट पर प्रतिबन्ध जैसे कदम उठाये जाने की बात कही गई थी। बरिस्ता में इसी विषय को लेकर आप सुधीजनों के विचार आमंत्रित किये गए हैं....इन विचारों को १६ दिसंबर से ३१ दिसंबर तक प्रकाशित किया जायेगा।

इस बार का विषय है >> ‘‘पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त इस तरह के माध्यमों पर क्या आंशिक और पूर्णतः प्रतिबन्ध आवश्यक है?’’ और इस विषय पर प्रस्तुत है प्रसिद्द ब्लॉगर डॉo कुमारेन्द्र सिंह सेंगर का आलेख और इस आलेख का शीर्षक है "प्रतिबन्ध से माहौल सुधरेगा"

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कपिल सिब्बल के एक बयान से देश में कम्प्यूटर पर बैठ कर क्रान्ति करने का दम भरने वालों में भगदड़ सी मच गई। इसी के साथ-साथ एक बहस शुरू हो गई अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर। बहस होनी भी चाहिए...इस तरह की बहस से एक दिशा प्राप्त तो होती ही है साथ ही हमें वास्तविक स्थिति का भी आभास होता है।

इधर देखने में आ रहा है कि सोशल नेटवर्किंग साइट पर किसी तरह का नियन्त्रण न होने के कारण, किसी तरह की सम्पादन व्यवस्था न होने के कारण व्यक्ति उसका उपयोग निर्द्वन्द्व रूप से करता है। इसी कारण से वह कभी-कभी गुस्से में, कभी हताशा में अपने विचारों को अशालीनता की स्थिति तक ले जाता है। अभी देखने में भी आ रहा है कि जब से अन्ना के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन ने देश की सोई हुई चेतना को जगाया है तबसे इन साइट पर काम कर रहे कुछ खुरापाती तत्वों ने भी अपनी कुत्सित मानसिकता को जगा दिया। एकाएक इन साइट पर भौंड़े कमेंट करने की, भद्दी तस्वीरें लगाने की, अश्लील विचार लिखने की बाढ़ सी आ गई है।

कुत्सित मानसिकता रखने वाले लोगों ने अपने भावों-विचारों के केन्द्र में राजनेताओं को रखकर अपनी भड़ास निकाली वहीं इसी की आड़ में धार्मिक भावनाओं के प्रति भी विद्वेष प्रदर्शित कर दिया। सरकार ने इन्हीं कई बातों को ध्यान में रखकर प्रतिबंध लगाने की बात कही है किन्तु उसका तर्क बेतुका दिखता है। सोशल साइट के माध्यम से किसी भी रूप में धार्मिक सौहार्द्र न तो बनता दिखता है और न ही बिगड़ता। देखा जाये तो इन साइट से ज्यादा तो ये नेता ही माहौल बिगाड़ने का कार्य करते दिखाई देते हैं।

बहरहाल विषय यह नहीं है कि कौन माहौल बिगाड़ रहा है और कौन नहीं, विषय यह है कि प्रतिबंध आवश्यक है अथवा नहीं? यह बात उस किसी भी व्यक्ति को मानने से गुरेज नहीं होगा जो सार्वजनिक रूप से अश्लीलता के पक्ष में नहीं रहता होगा कि वर्तमान में स्वतन्त्रता प्राप्त कर लेने के बाद इन साइट पर अश्लील एवं अशोभनीय सामग्री का प्रकाशन कुछ अधिक ही हो गया है। देखने में तो यहां तक आ रहा है कि अब लोग सिर्फ नेताओं को ही अपनी इस कुत्सित भावना का शिकार नहीं बना रहे हैं बल्कि इन साइट पर कमेंट करके साथ वालों को भी बेइज्जत करने में लगे हुए हैं।

इसे मानवीय कमजोरी ही कही जायेगी कि जैसे ही हमें स्वतन्त्रता और ऐसी स्वतन्त्रता जिसपर दूर-दूर तक कोई अंकुश लगाने वाला न हो, हम उच्छृंखल हो जाते हैं। यहां भी कुछ ऐसा ही हुआ, अपनी उच्छृंखलता और निरंकुश स्वतन्त्रता ने कुछ भी लिखने, कोई भी चित्र-वीडियो लगाने की छूट ले ली और इसका परिणाम अश्लीलता, अशोभनीयता, अमर्यादित आचरण के रूप में सामने आया। हमें यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि हमारा इस तरह का व्यवहार भले ही एक पल को हमारी आन्तरिक कमजोरी को तुष्ट करता हो किन्तु सम्पूर्ण विश्व में हमारी अपनी व्यक्तिगत छवि को विकृत करता है, हमारे देश की छवि को भी दागदार करता है। कम से कम हमारा व्यक्तिगत रूप से ऐसा मानना है कि पूर्ण और निरंकुश स्वतन्त्रता पर आंशिक ही सही पर प्रतिबंध आवश्यक है। इससे वैचारिक माहौल सही रहेगा और आपसी समन्वय में कमी भी नहीं दिखेगी, साथ ही इन साइट के जरिये फैल रही अश्लीलता पर भी कुछ हद तक विराम लग सकेगा।

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डॉ0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर

सम्पादक-स्पंदन