ई-बरिस्ता एक ऐसा मंच है जहाँ हम सब किसी भी विषय पर आपस में चर्चा कर सकते हैं...एक सार्थक चर्चा कर सकते हैं. ई-बरिस्ता में एक माह में हम दो विषयों को अपनी चर्चा का केंद्र-बिन्दु बनायेंगे. पहले विषय पर हमारी चर्चा 1 तारीख से 15 तारीख तक और दूसरे विषय पर चर्चा 16 तारीख से 30/31 तारीख तक चला करेगी.

इन विषयों पर आपसे आलेखों की अपेक्षा रहेगी जो सम्बंधित विषय पर गंभीरता से प्रकाश आरोपित करके विषय पर सही राह सभी को दिखा सकेंगे. आप सभी से ये भी अपेक्षा रहेगी कि अपने आलेख भेजने के साथ-साथ आप अपने मित्रों और सहयोगियों से भी सम्बंधित विषय पर आलेखों को प्रेषित करवाएंगे.

आलेखों का प्रकाशन नित्य किया जायेगा किन्तु निश्चित समयावधि के बाद प्रकाशन संभव नहीं होगा. अतः आप सभी विषय की निर्धारित तिथि तक अवश्य ही आलेख प्रेषित करियेगा...

आपके सुझावों, आलेखों और टिप्पणियों का इंतज़ार रहेगा.

कृपया आप अपने आलेख, सुझाव, टिप्पणी आदि हमें ebaristaa@gmail.com पर मेल करें.

बुधवार, 28 दिसंबर 2011

अन्ना आन्दोलन को लोकप्रियता क्या मीडिया के द्वारा मिल रही है? -- ई-बरिस्ता पर चर्चा का नया विषय

ई-बरिस्ता सार्थक चर्चा के लिए बनाया गया आपका ही मंच है. पिछले कुछ माह से देश में लगातार जन लोकपाल बिल को लेकर माहौल बना हुआ है. एक वर्ग ऐसा है जो देश में लोकपाल को लेकर मची हलचल के लिए अन्ना के अनशन को प्रभावी मानता है जबकि एक वर्ग ऐसा भी है जो इसके पीछे मीडिया का हाथ बताता है...इस दूसरे वर्ग का कहना है कि इसी कारण से अन्ना टीम ने अपने लोकपाल बिल में मीडिया को शामिल नहीं किया है.....

देश में पिछले ग्यारह साल से अनशन कर रही इरोम शर्मीला का नाम हो अथवा ६८ दिनों तक अनशन के बाद मौत का शिकार हुए निगमानंद ऐसे नाम हैं जो देश के सामने नहीं आ सके हैं...ऐसे में कहीं न कहीं मीडिया की भूमिका चर्चा में आती ही है...बस इसी कारण ई-बरिस्ता ने भी अपनी चर्चा का विषय मीडिया को बनाया है. इस बार का विषय है "अन्ना आन्दोलन को लोकप्रियता क्या मीडिया के द्वारा मिल रही है?"

इस मुद्दे के पक्ष या विपक्ष में अपने विचार हमें ebaristaa@gmail पर मेल करें...आपके विचारों का प्रकाशन १ जनवरी २०१२ से १५ जनवरी २०१२ तक किया जायेगा.

रविवार, 25 दिसंबर 2011

डॉ0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर का ई बरिस्ता पर आलेख -- "प्रतिबन्ध से माहौल सुधरेगा"

सरकार की तरफ से सोशल नेटवर्क साईट पर प्रतिबन्ध जैसे कदम उठाये जाने की बात कही गई थी। बरिस्ता में इसी विषय को लेकर आप सुधीजनों के विचार आमंत्रित किये गए हैं....इन विचारों को १६ दिसंबर से ३१ दिसंबर तक प्रकाशित किया जायेगा।

इस बार का विषय है >> ‘‘पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त इस तरह के माध्यमों पर क्या आंशिक और पूर्णतः प्रतिबन्ध आवश्यक है?’’ और इस विषय पर प्रस्तुत है प्रसिद्द ब्लॉगर डॉo कुमारेन्द्र सिंह सेंगर का आलेख और इस आलेख का शीर्षक है "प्रतिबन्ध से माहौल सुधरेगा"

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कपिल सिब्बल के एक बयान से देश में कम्प्यूटर पर बैठ कर क्रान्ति करने का दम भरने वालों में भगदड़ सी मच गई। इसी के साथ-साथ एक बहस शुरू हो गई अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर। बहस होनी भी चाहिए...इस तरह की बहस से एक दिशा प्राप्त तो होती ही है साथ ही हमें वास्तविक स्थिति का भी आभास होता है।

इधर देखने में आ रहा है कि सोशल नेटवर्किंग साइट पर किसी तरह का नियन्त्रण न होने के कारण, किसी तरह की सम्पादन व्यवस्था न होने के कारण व्यक्ति उसका उपयोग निर्द्वन्द्व रूप से करता है। इसी कारण से वह कभी-कभी गुस्से में, कभी हताशा में अपने विचारों को अशालीनता की स्थिति तक ले जाता है। अभी देखने में भी आ रहा है कि जब से अन्ना के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन ने देश की सोई हुई चेतना को जगाया है तबसे इन साइट पर काम कर रहे कुछ खुरापाती तत्वों ने भी अपनी कुत्सित मानसिकता को जगा दिया। एकाएक इन साइट पर भौंड़े कमेंट करने की, भद्दी तस्वीरें लगाने की, अश्लील विचार लिखने की बाढ़ सी आ गई है।

कुत्सित मानसिकता रखने वाले लोगों ने अपने भावों-विचारों के केन्द्र में राजनेताओं को रखकर अपनी भड़ास निकाली वहीं इसी की आड़ में धार्मिक भावनाओं के प्रति भी विद्वेष प्रदर्शित कर दिया। सरकार ने इन्हीं कई बातों को ध्यान में रखकर प्रतिबंध लगाने की बात कही है किन्तु उसका तर्क बेतुका दिखता है। सोशल साइट के माध्यम से किसी भी रूप में धार्मिक सौहार्द्र न तो बनता दिखता है और न ही बिगड़ता। देखा जाये तो इन साइट से ज्यादा तो ये नेता ही माहौल बिगाड़ने का कार्य करते दिखाई देते हैं।

बहरहाल विषय यह नहीं है कि कौन माहौल बिगाड़ रहा है और कौन नहीं, विषय यह है कि प्रतिबंध आवश्यक है अथवा नहीं? यह बात उस किसी भी व्यक्ति को मानने से गुरेज नहीं होगा जो सार्वजनिक रूप से अश्लीलता के पक्ष में नहीं रहता होगा कि वर्तमान में स्वतन्त्रता प्राप्त कर लेने के बाद इन साइट पर अश्लील एवं अशोभनीय सामग्री का प्रकाशन कुछ अधिक ही हो गया है। देखने में तो यहां तक आ रहा है कि अब लोग सिर्फ नेताओं को ही अपनी इस कुत्सित भावना का शिकार नहीं बना रहे हैं बल्कि इन साइट पर कमेंट करके साथ वालों को भी बेइज्जत करने में लगे हुए हैं।

इसे मानवीय कमजोरी ही कही जायेगी कि जैसे ही हमें स्वतन्त्रता और ऐसी स्वतन्त्रता जिसपर दूर-दूर तक कोई अंकुश लगाने वाला न हो, हम उच्छृंखल हो जाते हैं। यहां भी कुछ ऐसा ही हुआ, अपनी उच्छृंखलता और निरंकुश स्वतन्त्रता ने कुछ भी लिखने, कोई भी चित्र-वीडियो लगाने की छूट ले ली और इसका परिणाम अश्लीलता, अशोभनीयता, अमर्यादित आचरण के रूप में सामने आया। हमें यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि हमारा इस तरह का व्यवहार भले ही एक पल को हमारी आन्तरिक कमजोरी को तुष्ट करता हो किन्तु सम्पूर्ण विश्व में हमारी अपनी व्यक्तिगत छवि को विकृत करता है, हमारे देश की छवि को भी दागदार करता है। कम से कम हमारा व्यक्तिगत रूप से ऐसा मानना है कि पूर्ण और निरंकुश स्वतन्त्रता पर आंशिक ही सही पर प्रतिबंध आवश्यक है। इससे वैचारिक माहौल सही रहेगा और आपसी समन्वय में कमी भी नहीं दिखेगी, साथ ही इन साइट के जरिये फैल रही अश्लीलता पर भी कुछ हद तक विराम लग सकेगा।

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डॉ0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर

सम्पादक-स्पंदन

शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011

ई-बरिस्ता पर वंदना गुप्ता का आलेख = "सोशल साईट पर प्रतिबन्ध नहीं, उनकी उपयोगिता समझाने की आवश्यकता है"

सरकार की तरफ से सोशल नेटवर्क साईट पर प्रतिबन्ध जैसे कदम उठाये जाने की बात कही गई थी। बरिस्ता में इसी विषय को लेकर आप सुधीजनों के विचार आमंत्रित किये गए हैं....इन विचारों को १६ दिसंबर से ३१ दिसंबर तक प्रकाशित किया जायेगा।


इस बार का विषय है >> ‘‘पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त इस तरह के माध्यमों पर क्या आंशिक और पूर्णतः प्रतिबन्ध आवश्यक है?’’ और इस विषय पर पहला आलेख प्रस्तुत है प्रसिद्द ब्लॉगर वंदना गुप्ता जी का और इस आलेख का शीर्षक है "सोशल साईट पर प्रतिबन्ध नहीं उनकी उपयोगिता समझाने की आवश्यकता है"



आज वैचारिक क्रांति को सोशल साइट्स ने एक ऐसा मंच प्रदान किया है जिसने बौद्धिक जगत में एक तहलका मचा दिया है. कोई इन्सान, कोई क्षेत्र इससे अछूता नहीं है. सूचना और संचार का एक ऐसा साधन बन गया है जिसमे कहीं कोई प्रतीक्षा नहीं मिनटों में समाचार सारी दुनिया में इस तरह फैलता है कि हर खास-ओ-आम इससे जुड़ना चाहता है.

फेसबुक, ट्विटर, ऑरकुट या ब्लॉग सभी ने अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई है और अपना खास योगदान दिया है. आज जब इन सोशल साइट्स का दबदबा इतना बढ़ गया है तब हमारी सरकार इन पर प्रतिबन्ध लगाना चाहती है. ये तो इंसान के मौलिक अधिकारों का हनन है. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबन्ध लगाना तो गलत है ये तो ऐसा हुआ जैसे स्वतंत्रता को हथकड़ी पहना कर कटघरे में खड़ा करना. आखिर क्यों? ये प्रश्न उठना जायज है. इस सन्दर्भ में हमें इसके पक्ष और विपक्ष के दोनों पहलू देखने होंगे तभी हम सही आकलन कर पाएंगे.

आज जागरूकता के क्षेत्र में इन साइट्स ने एक ऐसा स्थान हासिल किया है जिसे नकारा नहीं जा सकता. और इसका ताज़ा उदाहरण मिस्र हो या लीबिया या फिर हमारा देश भारत सब जगह क्रांति को परवान चढाने में इन साइट्स का खास योगदान रहा. सबने अपनी अपनी तरह से बदलाव लाने के लिए योगदान दिया. आज जैसे ही कोई भी नयी जानकारी हो या कोई राजनैतिक या सामाजिक हलचल उसके बारे में सबसे पहले यहाँ सूचना मिल जाती है. यहाँ तक कि कोई भी क्षेत्र हो चाहे सरकारी या गैर सरकारी सब इनसे जुड़े हैं इसका ताज़ा उदाहरण देखिये हमारी सरकार ने ही ट्रैफिक पुलिस द्वारा किये चालान हों या किसी ने कोई नियम भंग किया हो उसके बारे में ताज़ा अपडेट्स यहाँ डाले हैं ताकि कोई भी हो चाहे नेता, मंत्री या संत्री सबको एक समान आँका जाये और उनके खिलाफ उचित कार्यवाही की जा सके और इसका असर भी देखने को मिला. पुलिस ने भी अपनी साईट बनाई है जिस पर जब चाहे कोई भी अपनी शिकायत दर्ज करवा सकता है तो जब ये ऐसे उचित माध्यम हैं कि सबकी हर जरूरत को पूरा करते हैं तो फिर क्यों चाहती है सरकार कि इन पर प्रतिबन्ध लगे ये प्रश्न उठना स्वाभाविक है.

इसके लिए हमें ये देखना होगा कि बेशक इन साइट्स ने लोकप्रियता हासिल कर ली है और खरी भी उतर रही हैं मगर जिस तरह सिक्के के हमेशा दो पहलू होते हैं उसी तरह यहाँ भी हैं. हर अच्छाई के साथ बुराई का चोली दामन का साथ होता है. ऐसे में यहाँ कई बार अश्लील सामग्री मिल जाती है जिससे ख़राब असर होता है या कई बार कुछ नेताओं के बारे में आपत्ति जनक तथ्य डाल दिए जाते हैं या उन्हें अपमानित कर दिया जाता है तो इससे सरकार घबरा गयी है क्योंकि उनके खिलाफ इसका प्रयोग इस तरह हो गया कि ऐसा तो उन्होंने सोचा भी नहीं था तो जब कोई और हल नहीं दिखा तो इन पर ही प्रतिबन्ध लगने का सोचने लगी. इसके अलावा एंटी सोशल एलिमंट्स सक्रिय हो जाते हैं जिससे सूचनाओं का गलत प्रयोग हो जाता है तब घबराहट बढ़ने लगती है मगर जब अंतरजाल के अथाह सागर में आप उतरे हैं तो छोटे- मोटे हिलोर तो आयेंगे ही और उनसे घबरा कर वापस मुड़ना एक तैराक के लिए तो संभव नहीं है वो तो हर हाल में उसे पार करना चाहेगा बस उसे अपना ध्यान अपने लक्ष्य की तरफ रखना होगा.

सरकार चाहती है अश्लीलता पर प्रतिबन्ध लगे ........ये बेशक सही बात है मगर क्या इतना करने से सब सही हो जायेगा? अंतर्जाल की दुनिया तो इन सबसे भरी पड़ी है और कहाँ तक आप किस किस को बचायेंगे और कैसे? सब काम ये साइट्स तो नहीं कर सकती ना. जिसने ऐसी साइट्स पर जाना होगा वो अंतर्जाल के माध्यम से जायेगा और जो कहना होगा वो कहेगा भी तो क्या फायदा सिर्फ इन साइट्स पर ही प्रतिबन्ध लगाने का. उचित है कि हम खुद में बदलाव लायें और समझें कि इन साइट्स की क्या उपयोगिता है और उन्हें सकारात्मक उद्देश्य से प्रयोग करें और अपने बच्चों और जानकारों को इनकी उपयोगिता के बारे में समझाएं ना कि इस तरह के प्रतिबन्ध लगायें क्यूँकि आने वाला वक्त इसी का है जहाँ ना जाने इससे आगे का कितना जहान बिखरा पड़ा है तो आखिर कब तक और कहाँ तक रोक लगायी जा सकेगी ........सामना तो करना ही पड़ेगा. वैसे भी इन साइट्स के संचालकों का कहना सही है यदि हमारे पास कोई सूचना आती है तो हम उस खाते को बंद कर देते हैं मगर पूरी तरह निगरानी करना तो संभव नहीं है. सोचिये जरा जब हम अपने २-३ बच्चों पर निगरानी नहीं रख पाते और उन्हें ऐसी साइट्स देखने से रोक नहीं पाते तो कैसे संभव है कि इस महासागर में कौन क्या लिख रहा है या क्या लगा रहा है कैसे पता लगाना संभव है?

आपसी समझ और सही दिशाबोध करके ही हम एक स्वस्थ समाज का निर्माण कर सकते हैं. मगर आंशिक या पूर्ण प्रतिबन्ध लगाना किसी भी तरह उचित नहीं है क्यूँकि आने वाला कल इन्ही उपयोगिताओं का है जिनसे मुँह नहीं मोड़ा जा सकता. बदलाव को स्वीकारना ही होगा मगर एक स्वस्थ सोच के साथ. आत्म-नियंत्रण और स्वस्थ मानसिकता ही एक स्वस्थ और उज्ज्वल समाज को बनाने में सहायक हो सकती है ना की आंशिक या पूर्ण प्रतिबन्ध.

वन्दना गुप्ता गृहिणी

http://vandana-zindagi.blogspot.com

http://redrose-vandana.blogspot.com

http://ekprayas-vandana.blogspot.com

शनिवार, 10 दिसंबर 2011

ई-बरिस्ता पर बहस का नया विषय - प्रकाशन हेतु आलेखों का आमंत्रण

कपिल सिब्बल के सोशल नेटवर्किंग साइट पर प्रतिबंध के बयान के बाद से तो पूरे देश के उस वर्ग में भूचाल सा आ गया जो कम्प्यूटर पर बैठकर क्रान्ति करने का दम भरता है। इसके साथ ही उस वर्ग में भी हलचल मच गई जो वर्ग इन साइट के उपयोगकर्ताओं द्वारा निशाना बनाया जा रहा था।

देखा जाये तो आज के समय में विचारों की स्वतन्त्रता सभी को प्राप्त है और ऐसे में विचाराभिव्यक्ति पर प्रतिबन्ध तानाशाही की याद दिलाता है न कि लोकशाही की। इसके बाद भी यह कहने में सोशल नेटवर्किंग साइट का उपयोग करने वाले भी कोई संकोच नहीं करेंगे कि कहीं न कहीं बहुत से उपयोगकर्ताओं की भाषा और विचाराभिव्यक्ति अशालीन, अमर्यादित हो जाती है। वे सरकार की बुराई करने में और आपसी विचार विनिमय में अश्लीलता की हद तक पार कर जाते हैं।

बहरहाल कुछ भी हो सरकार के द्वारा प्रतिबन्ध का इरादा ही तानाशाही प्रक्रिया की याद दिलाता है और इन साइट का उपयोग करने वालों का अशालीन हो जाना हमारे असामाजिक होने को दर्शाता है। इन साइट पर किसी तरह का प्रतिबन्ध न होना, सम्पादन की बाध्यता न होना इसके उपयोगकर्ताओं को उच्छृंखल बनाता है। ऐसे में आपको क्या लगता है कि ‘‘पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त इस तरह के माध्यमों पर क्या आंशिक और पूर्णतः प्रतिबन्ध आवश्यक है?’’

यही इस बार के ई-बरिस्ता का विषय भी है जिसके पक्ष में और विपक्ष में आप सभी लोगों के विचार आमन्त्रित हैं। आपके विचारों को 15 दिसम्बर से 31 दिसम्बर के मध्य ई-बरिस्ता में प्रकाशित किया जायेगा। उक्त विषय पर अपने आलेख कृपया ebaristaa@gmail.com पर मेल करें। धन्यवाद

गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

छोटे राज्यों से ही देश का विकास सम्भव -- ई-बरिस्ता में बहस का विषय

उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री सुश्री मायावती ने उत्तर प्रदेश को चार भागों में विभाजित करने की बात कही है और इससे राज्यों के निर्माण पर और इस फैसले के सही या ग़लत होने पर एक ज़बरदस्त बहस छिड़ गई है.

देखा जाये तो विकास के लिए छोटे राज्यों का होना फायदेमंद ही होता है क्योकि छोटे राज्यों में विकास की योजनाये जल्दी लागू होती हैं, केंद्र से मिलने वाली सुविधाओं का बेहतर वितिरण होता है, सुरक्षा व्यवस्था मजबूर होती है, यानि कि यह कहा जा सकता है कि शांति और सहूलियत से काम होता है.

ऐसे बहुत से क्षेत्र है जहाँ विकास वाकई में नहीं है, जैसे कि आप पूर्वांचल और बुंदेलखंड को देख लें. इसके विपरीत ये देखा जाये कि अगर इसी तरह से राज्य की मांगे तूल पकड़ने लगीं तो यह देश के लिए एक बड़ा संकट होगा, क्योकि ये मांगें अक्सर राजनितिक लाभ के लिए ही की जातीं हैं कि विकास के लिए. देखा जाये तो जो राज्य नए बनेगे फिर उनको भी विभाजित करने की बात की जाने लगेगी. इसके अलावा पूर्व में भी जो राज्य विभाजित हुए हैं उनमे ज्यादातर में ऐसा विकास नहीं दिखता कि उससे आम जनता को बहुत लाभ मिल गया हो. छत्तीसगढ़ और झारखण्ड को देख कर तो ऐसा ही लगता है कि यह सिर्फ और सिर्फ एक राजनीति स्टंट के सिवा कुछ नहीं.

चलिए अब देखतें हैं की उत्तर प्रदेश के विभाजन में सबसे ज्यादा फायदा किस राज्य को होगा................

इस विभाजन में "पूर्वांचल" सबसे बड़ा राज्य होगा जिसके ३२ जनपद होंगे. देखा जाये तो पूर्वांचल में सिर्फ वाराणसी ही एक ऐसा जनपद है जो शिक्षा, हॉस्पिटल, पर्यटन और आधुनिक सुविधाओं से भरपूर है आप यह कह सकते हैं की पूर्वांचल को सम्हालने वाला एक मात्र शहर.

इसके बाद "हरित प्रदेश" जिसमे २२ जनपद होंगे. यहाँ कृषि अर्थव्यवस्था बहुत ही बेहतर है.

अवध प्रदेश यानि कि उत्तर प्रदेश का मध्य हिस्सा जिसमे करीब १४ जनपद होंगे और यह कहा जा सकता है की मायावती जी के लिए सबसे फायेदेमंद होगा. यहाँ लखनऊ.अयोध्या और दुधवा नेशनल पार्क से पर्यटन से फायदा है तो दूसरी ओर तो कानपुर जैसा बड़ा औधोगिक शहर भी है जो विकास को गति प्रदान करेगा.

सबसे छोटा होगा बुंदेलखंड इसमें जनपद आएंगे और यह आर्थिक रूप से काफी पिछड़ा हुआ और भोगोलिक रूप से भी यहाँ जीवन यापन काफी मुश्किल है|

परिस्थितियों पर गौर करने के बाद आपको क्या लगता है ,यह राज्य विभाजन सही है अथवा ग़लत??

बरिस्ता एक ऐसा मंच है जिस पर विविध विषयों पर हम सभी आपस में चर्चा करेंगे। आज इस चर्चा का पहला विषय आप सभी के सामने प्रतिपादित किया जा रहा है।

आइये बरिस्तामें इसी बिंदु पर कुछ चर्चा करते हैं और इसके कुछ पहलुओं को समझने की कोशिश करते हैं.

आप भी हमारे साथ इस चर्चा में शामिल हों और अपने विचारों से सभी को अवगत करायें कि क्या छोटे राज्यों के निर्माण से देश का विकास सम्भव है? क्या देश का विकास सिर्फ और सिर्फ छोटे राज्यों के द्वारा ही किया जा सकता है?

चर्चा के लिए विषय है-छोटे राज्यों से ही देश का विकास सम्भव

आप इस विषय के पक्ष में और विपक्ष में अपनी राय हमें 15 दिसम्बर 2011 तक भेज दें। बरिस्ता में आलेखों का प्रकाशन नियमित रूप से होता रहेगा और इस विषय पर अन्तिम आलेख 15 दिसम्बर को ही प्रकाशित किया जायेगा। कहने का अर्थ यह है कि इस विषय पर हमारी चर्चा के द्वारा जो भी आलेख प्राप्त होंगे उनका प्रकाशन 1 दिसम्बर से 15 दिसम्बर तक ही किया जायेगा। 15 दिसम्बर के बाद चर्चा के लिए हम किसी और विषय को आपसे बांटेंगे।